बिना श्रम के सुख नीरस हो जाता है। सुमन शूल बन जाते हैं।फूलों की सेज काँटों की तरह चूभने लगती है।जीवन निरर्थक लगने लगती है।मनोरंजन क्रोध पैदा करने लगता है।शांति भंग हो जाती है।।।।7007860070. 8881891811

श्रमेव जयते ।
श्रम ही सुख का पिता है।

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